""भावनाओं में बहता हुआ इंसान ही अच्छा है......""

ओशो कहते है कि ""जो सन्त हो गया है वहाँ तो एक प्रकार से मुर्दा ही है उसके जीवन मे कोई राग, रस कुछ भी तो नही है।लोग संतो के पास बैठना इसलिए पसन्द नही करते है दूर से ही कहतें है महाराज जी प्रणाम....."" जो हजारो सालो से हमारे पुरखे सुनते आ रहे है वो ही वेदों,पुराणों की बाते हम सुनते है।इन आजकल के संतों ने नया कुछ खोजा है? खोजेंगे कैसे ये विचार शून्य जो हो गये है विचार शून्य हो गये कोई भावना,इनके ज़ेहन में नही बची,अब बात बहुत सीधी साधी है जब इनमे न विचार है,न भावनाये,तो ये हमे बिना प्रेम,दया,करुणा,और भक्ति के ढोंग से,क्या देंगे, क्या चाहते है हम इन लोगो से?? क्या ईश्वर को चाहते है? ये संत हमारी मदद करेंगे जो विचार शून्य है? भावनाओं को अंर्तमुखी कर दिया, बिना भावनाओं के कौनसा ईश्वर मिलता है भाई? हम जन सामान्य,जो विचारों से भरे हुवे है,भावनाओ का हम में संचार है तो हमे ईश्वर की खोज में,अथवा जीवन को सही तरीक़े से जीने में,किसी की क्या जरूरत है? उन्ही जातक कथाओं को सुना कर,फर्जी संत केवल हम मानवो का शोषण कर रहे है।जो खुद लोभ में आकर लाखो रुपये ले लेते है। अतः ""भावनाओ में बहते हुवे इंसान,हम विचार शील लोग हर मायने में किसी भी धर्म के संतों से श्रेष्ठ है।"" ""किसी की बात को केवल इसलिए मत मानो की वहाँ बात किसी महान व्यक्ति ने कही है,या कोई पवित्र किताब में लिखी है। किसी भी बात को केवल तब ही मानो जब आपने उस बात को तर्क की कसौटी पर कसा है और वहाँ बात आपको,आपके व सम्पूर्ण मानव जाति के हित मे लगे,ही ही मानो"" "तथागत बुद्ध" मानोगे गे भय्या तो शोषण कोई न कोई करता रहेगा,इसलिए जानो, शोषक कोई भी हो सकता है संत,राजनेता, कोई भी सामान्य व्यक्ति। हम जानकर ही कुछ भी प्राप्त कर सकते है मानकर नहीं। मेरा भारत प्रबुद्व भारत

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